- इंटरनेशनल आर्टिस्ट प्रोफेसर राजेंद्र पाटिल और भाजपा युवा नेता कुलदीप सिंह बैंसला ने की आर्ट गैलरी में शिरकत
जयपुर। आई.टी.सी. राजपूताना की वैलकम आर्ट गैलरी में जयपुर आर्ट समिट की ओर से भारत और ईरान के कलाकारों की बनाई चित्र कृतियों और विभिन्न हस्तकलाओं की प्रदर्शनी ‘तज़िकरा’ का आयोजन किया गया है। 8 फरवरी तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में तीसरे दिन भी कलाप्रेमियों की जबरदस्त भीड़ रही। कला दीर्घा की दीवारों पर एक से बढ़कर एक खूबसूरत चित्र लगाए गए हैं। वहीं दीवारों के ठीक नीचे ईरान की विभिन्न दस्तकारियों के बेहतरीन नमूने सजाए हुए हैं।
बुधवार को महाराष्ट्र के इंटरनेशनल आर्टिस्ट प्रोफेसर राजेंद्र पाटिल, भाजपा युवा नेता कुलदीप सिंह बैंसला आर्ट गैलरी को निहारने पहुंचे। वहीं बैंसला ने यूपीआई ट्रांजेक्शन को बढ़ावा देने के लिए ईरानी आर्टिस्ट को यूपीआई भुगतान के लिए मोटिवेट किया। तज़िकरा दरअसल अरबी शब्द है जिसका अर्थ चर्चा या ऐतिहासिक व्याख्यान होता है। इस एग्जीबिशन में इसी शब्द के अनुरूप दोनों देशों की कलाओं की एक तरह से चर्चा है, जिसकी वहां मौजूद कलाकारों और कला प्रेमियों ने अपने-अपने शब्दों में व्याख्या की।
प्रदर्शनी में पद्मश्री तिलक गिताई, समंदर सिंह खंगारोत सागर, वैदिक चित्रकार रामू रामदेव, महावीर स्वामी, कल्याण जोशी, वीरेन बन्नू, मोहित जांगिड़ और विजय कुमावत, मनिजेश मोखतारी, मरियम मोखतारी, जहारा जहान टिग, हजारापीरी हरमादानी, मोबिनाकमाली देगान, मोजादे मोजाफितावना, नसरीन कारदानी इफसानी की कृतियों का सौन्दर्य और रंगों का संयोजन देखने को मिला। जयपुर आर्ट समिट के फाउंडर एवं कला मर्मज्ञ शैलेन्द्र भट्ट ने सभी का स्वागत किया।
ईरानी हस्तशिल्प जो यहां देखने को मिलेगा
चित्रों के साथ साथ यहां ईरानी हस्तशिल्प के भी दर्जनों नमूने देखने योग्य हैं। ईरानी कला विश्व इतिहास में सबसे समृद्ध कला विरासतों में से एक है। इस प्रदर्शनी में यहां की कुछ प्राचीन हस्तकलाओं को प्रदर्शित किया गया है जिनमें वहां की बख्तियारी, घालमकारी, खुश-खती, मुर्राका, दस्तकारी, तबाची, मीनाकारी, खतमकारी, कलमकारी और मोनाबतकारी कलाओं के नमूने खास हैं।
ईरानी चित्रकार ने बनाया भगवान राम का चित्र
ईरानी चित्रकार मनिजेह मोखतारी भारतीय संस्कृति से काफी प्रभावित हैं। मोखतारी ने यहां प्रदर्शित करने के लिए भगवान राम का चित्र खास अंदाज में बनाया है। मोखतारी ने बताया कि उन्होंने पहले ईरानी शैली में एक कारपेट बुना और उसके बाद उस पर भगवान राम का चित्र प्रिन्ट किया। ऐसा करने के लिए उन्होंने भारतीय संस्कृति के अनुरूप शुद्धता का पूरी तरह से निर्वहन किया। कारपेट जिस स्थान पर बुना गया उस स्थान को उन्होंने साफ रखा और हर रोज़ नहाकर वे रेशमी वस्त्र धारण कर काम किया। इस कलाकृति की पवित्रता को बनाए रखरने के लिए वो इसको यहां एक रेशमी कपड़े में लपेटकर लाए हैं।