संतान की लम्बी उम्र और उज्ज्वल भविष्य के लिए हर महिला ढेरों व्रत और पूजा पाठ करती हैं। ऐसा ही एक व्रत है सकष्टी चौथ यानि सकट चौथ का, जब वे अपने पुत्र और पति की दीर्घायु के लिए व्रत एवं पूजा करती हैं। माघ मास में पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी को चौथ या संकष्टी चौथ कहते हैं। यूं तो चतुर्थी हर महीने में आती है। लेकिन माघ माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया को पड़ने वाले सकट चौथ व्रत का अलग ही महत्व माना गया है। इस वर्ष यह व्रत 13 जनवरी सोमवार को मनाया जाएगा। जब महिलाएं तिल के लड्डू और तिलकुटा बनाकर भगवान गणेश की पूजा अर्चना करेंगी। इस पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए निर्जला व्रत भी किया जाता है
इन नामों से भी जानते हैं :
संकष्टी चौथ को कई नामों से जाना जाता है। इसमें माघी चौथ, संकटा चौथ, तिलकुटा चौथ, सकट चौथ आदि नाम प्रचलित हैं। हर चंद्रमास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद की चतुर्थी संकष्टी एवं अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी भी कहा जाता है। इस तरह हरेक वर्ष में 12 संकष्टी चतुर्थी होती हैं, जिनमें माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी बहुत फलदाई मानी गई है।
ये है पूजा की विधि :
मान्यतानुसार इस दिन भगवान गणेश की पूजा और व्रत किया जाता है। साथ ही चंद्रदेव की पूजा-अर्चना भी की जाती है। महिलाएं पूरा दिन निर्जला उपवास रख चंद्रमा को देख कुश से अर्घ्य देकर पूजा करती हैं।
सकट चौथ का शुभ मुहूर्त :
पं. ब्रजमोहन शर्मा ने बताया कि सकट चौथ के दिन चंद्रमा उदय होने का समय रात 9 बजे होगा। वहीं चतुर्थी तिथि की शुरुआत 13 जनवरी को शाम 5 बजकर 32 मिनट से मानी जाएगी।
और चतुर्थी तिथि का समापन 14 जनवरी को दोपहर 2 बजकर 49 मिनट पर होगा।
यह है महत्व :
पं. ब्रजमोहन शर्मा के अनुसार भगवान गणेश की पूजा का संकष्टी चतुर्थी के दिन बहुत महत्व माना गया है। मान्यतानुसार ऋषि भारद्वाज और माता पार्वती का पुत्र अंगारक एक महान ऋषि और भगवान गणेश का परम भक्त हुआ करता था। पूजा करने पर माघ कृष्ण चतुर्थी के दिन भगवान गणेश ने उन्हें आशीर्वाद देकर उनसे वरदान मांगने को कहा। तब उन्होंने कहा कि उनका नाम हमेशा के लिए भगवान गणेश से जोड़ दिया जाए। इसलिए इस व्रत में गणेश जी की आराधना करने से संतान को रिद्धि-सिद्धि प्राप्त होती है और विघ्न–बाधाओं को गणेश जी दूर करते हैं। इस दिन स्त्रियां निर्जला व्रत कर शाम को गणेश पूजन तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर जल ग्रहण करती हैं।