फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। वहीं कई कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि को शिव के प्राकट्य यानि प्रकट दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। कहा जाता है कि इसी रात्रि को भगवान शिव ‘लिंग’ रूप में अवतरित हुए थे।
शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में ये है अंतर :
हर महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन आने वाली रात्रि ‘शिवरात्रि’ के रूप में मनाई जाती है, लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाली रात्रि को ‘महाशिवरात्रि’ पर्व के रूप में मनाया जाता है। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से ‘महाशिवरात्रि’ को विशेष माना गया है। इस दिन उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में दीपस्तंभ जलाए जाते हैं।
शिवलिंग की परिक्रमा का रखें विशेष ध्यान :
भगवान शिव की पूजा करने के बाद शिवलिंग की परिक्रमा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। आपको बता दें कि शिव की आधी परिक्रमा ही लगाई जाती है।याद रहे शिवलिंग के बायीं ओर से परिक्रमा शुरू करनी चाहिए और जहां से शिव जी को चढ़ाया जल बाहर निकलता है वहां से वापस लौट आएं। उस जगह को कभी भी लांघना नहीं चाहिए। वहीं से वापस आकर जल चढ़ाने वाली जगह पर आकर परिक्रमा को पूर्ण करें।
ये रहेगा महाशिवरात्रि के चारों प्रहरों की पूजा का समय :
- प्रथम प्रहर — 6:15 से 09:25 तक
- द्वितीय प्रहर — 9:25 से 12:34 तक
- तृतीय प्रहर — 12:34 से 3:44 तक
- चतुर्थ प्रहर — 3:44 से 6:54 तक