23 सितम्बर 1935 को जन्मे प्रेम चोपड़ा भारतीय सिनेमा का एक बहुत लोकप्रिय चेहरा हैं। ये लगभग 60 बरसों में 380 से अधिक फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं। राजेश खन्ना की कई प्रसिद्ध फिल्मों में इन्होंने मुख्य विलेन यानि खलनायक का किरदार निभाया है, जिसे आज तक दर्शक और आलोचक सराहते और याद करते हैं।
लाहौर में जन्मे और बाद में शिमला में पढ़े प्रेम चोपड़ा की अभिनय में रुचि कॉलेज के दिनों से ही शुरू हो गई थी। परिवार को नापसंद होने के बावजूद ये अपने सपनों को लेकर पक्के थे, और फिर बॉलीवुड में अपनी किस्मत आजमाने के लिए ये मुम्बई चले गए। संघर्ष के दिनों में इन्होंने अखबार में भी काम किया और साथ ही फिल्मों में भी काम करते रहे। वर्ष 1967 में उपकार फिल्म के बाद इनकी पहचान बनने लगी और फिर इन्हें पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा।
यदि फिल्मों पर नजर डालें, तो प्रेम चोपड़ा ने शहीद, वो कौन थी, उपकार, दो रास्ते, दो अनजाने, कटी पतंग, काला सोना, दोस्ताना, क्रांति, ऊंचे लोग, जानवर, निशान, पूनम की रात, तीसरी मंजिल, फूल बने अंगारे, प्रेम पुजारी, यादगार, हिम्मत, पूरब और पश्चिम, कीमत, अजनबी, बेनाम, पॉकेट मार, दो जासूस, ड्रीम गर्ल, दिल और दीवार, देस परदेस, आज़ाद, दूल्हे राजा, अनाड़ी नं 1, लाल बादशाह, कोई मिल गया, बंटी और बबली, धमाल, डैडी कूल, पटियाला हाउस जैसी फिल्मों में अभिनय किया। चोपड़ा मानते हैं कि उनकी सबसे बेहतरीन फिल्में रहीं – कुंवारी, सिकंदर–ए–आजम, शहीद, जादू टोना और चोरी–चोरी चुपके–चुपके।
प्रेम चोपड़ा मानते हैं कि वे हीरो बनने मुम्बई आए थे, हालांकि दर्शकों ने उन्हें विलेन के तौर पर बहुत पसंद किया और खलनायक के रूप में ही भारतीय सिनेमा में इनकी पहचान बनी। वर्ष 1976 में इन्हें फिल्म दो अनजाने के लिए फिल्मफेयर बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर अवॉर्ड मिला। वहीं वर्ष 2004 में इन्हें एटलांटिक सिटी में लिजेंड ऑफ इंडियन सिनेमा अवॉर्ड से नवाज़ा गया। ये अशोका अवॉर्ड, आशीर्वाद अवॉर्ड, लायन्स क्लब अवॉर्ड और पंजाबी कला संगम अवॉर्ड भी अपने नाम कर चुके हैं।
प्रेम चोपड़ा की बेटी रितिका नन्दा ने इनकी आत्मकथा भी लिखी है, जिसका टाइटल है – प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा।