देश में भले ही कोरोना को लेकर हाहाकार मचा हो, मगर बिहार Bihar में अब चुनाव की जयकार शुरू हो चुकी है। कोरोना के चलते इस बार रैलियों पर रोक है, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग की पालना में पारंगत सोशल (वर्चुअल) रैलियां इस वक्त उफान पर हैं। उफान की बात करें तो बिहार के कई हिस्से बाढ़ की मार से भी जूझ रहे हैं। वहीं सरकार, विपक्ष और नए फ्रंट सोशल गुरूओं को ढूंढ़ने में लगे हैं। ताकि घर बैठे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी पहुंच बना सकें। जिससे पार्टी के टिकट बंटवारे की लिस्ट में इनका नाम मजबूती के साथ दिखाई दे सके।
कौन होगा सीएम चेहरा :
हालांकि चुनाव आयोग Election Commission ने फिलहाल चुनाव की तारीखों का कोई ऐलान नहीं किया है। मगर BJP ने साफ कर दिया है कि वह 13 सितंबर से प्रदेश में चुनाव प्रचार शुरू करने जा रही है। इसके चलते प्रदेश कमेटी की ओर से तैयारियों को आखिरी रूप दिया जा रहा है। इस दौरान कोरोना से बचाव की गाइडलाइंस को पूरी तरह से फॉलो करने की सलाह पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को दे रही है। बता दें कि भाजपा बिहार में विदआउट CM चेहरे के साथ उतरेगी। समर्थन और गठबंधन की स्थिति की बात करें तो फिलहाल बिहार बीजेपी कसमकस में दिखाई दे रही है।
बिहार चुनाव की बात आते ही एक शब्द आपके दिमाग में जरूर घूम रहा होगा। जिसने पिछले चुनावों में एक अहम भूमिका निभाई थी। मगर ‘उठापटकिया राजनीति’ के चलते यह मुद्दा ज्यादा दिन तक कामयाब नहीं हो सका। ये शब्द था ‘इन्टॉलरेंस यानी असहिष्णुता’ पिछले बिहार चुनाव में इस इन्टॉलरेंस Intolerance के मुद्दे पर खूब डिबेट्स की गईं। मगर जब आज बिहार के लोगों से चर्चा हुई तो ये शब्द अभी तक उनकी समझ से परे दिखा।
ये मुद्दा रह सकता है अहम :
इन्टॉलरेंस को लेकर लोगों का कहना है कि यह एक महज चुनावी स्टंट था। असल मुद्दा तो ‘आरक्षण’ का था, जिसे कमजोर करने के लिए या कहें ध्यान भटकाने के लिए ‘पॉलिटिकल फैक्ट्रियों’ की ओर से इस शब्द को चलन में लाया गया। इस बार ‘बेरोजगारी’ Unemployment बिहार चुनावों में अहम मुद्दा बन सकता है। बशर्ते पॉलिटिकल फैक्ट्रियों को कोरोना के चलते बंद रखा जाए।