हजारों ख्वाहिशें और उन्हें पूरा करने का जुनून, युवा मन का हाल ही कुछ ऐसा होता है। इनमें कब कौनसा विचार हावी हो जाए यह कहना और समझना बेहद मुश्किल काम है। आज युवाओं के बढ़ते सुसाइड केस भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं। जानकारों की मानें तो किसी भी तरह का दबाव या परिजनों की रोकटोक आज का युवावर्ग सुनना पसंद नहीं करता। वहीं प्रतिस्पर्धा भी इस तरह के केसेज को बढ़ाने में बड़ा कारण बन रही है। ऐसे में वह एकाकी प्रवृत्ति अपनाते हैं और डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। जिससे इस तरह के केसेज में बढ़ोतरी हो रही है।
यहां से शुरू करें संभालना :
नौ से दस साल की उम्र में ही बच्चों में समाज को समझने की शुरुआत हो जाती है। इस उम्र में बच्चों पर जहां एक ओर पढ़ाई का बोझ बढ़ने लगता है। वहीं दूसरी ओर परिजनों की अपेक्षाएं भी बढ़ना शुरू हो जाती हैं। इस स्थिति में परिजनों की ओर से बोली गई छोटी सी बात भी उनके बालमन पर बुरा प्रभाव छोड़ती हैं। जो उनमें आक्रामक और खुद को नुकसान पहुंचाने जैसे भावों को जन्म देती हैं।
ये रहते हैं कारण :
नम्बर अच्छे नहीं आए या जॉब की टेंशन थी, यह ऐसे कारण हैं जो युवावर्ग के सुसाइड केसेज में आसानी से सुनने को मिल रहे हैं। स्कूल के समय से ही नम्बरों की टेंशन बच्चों में घर करने लगती है जो युवावस्था तक आते-आते बहुत बढ़ जाती है। वहीं टीनेजर में हार्मोनल चेंजेज भी बहुत तेजी से होते हैं। ऐसे में छोटी सी बात पर भी मूड़ खराब हो जाता है। लेकिन यदि बच्चा चुप रहने लगे या मन की बातें छुपाकर अकेला रहने लगे तो इस ओर ध्यान देना आवश्यक है।
पेरेन्ट्स नहीं दोस्त बनें :
टीनेजर से बातचीत और दोस्तीभरा व्यवहार भी आज के दौर की बड़ी जरूरत बनकर सामने आ रही है। इस उम्र में माता-पिता को बच्चों के साथ रोज थोड़ा समय बिताना चाहिए। जिससे वे अपने मन की बातें शेयर करें। प्रेरणास्पद प्रसंग भी युवाओं को मोटिवेट करने के लिए सहायक साबित होते हैं।
युवाओं में आने वाली सुसाइड की प्रवृत्ति एक या दो दिनों में नहीं बनती। यह धीरे—धीरे अपना काम करती है और फिर कहीं जाकर कोई भी व्यक्ति सुसाइड जैसा आत्मघाती कदम उठाता है। जिसका मुख्य कारण डिप्रेशन में
जाना होता है। इसके भी तीन मुख्य कारण होते हैं।
— पहला जैनेटिक,
— दूसरा व्यक्तित्व और
— तीसरा आस—पास का एनवायरमेंट।
इनमें से कोई एक कारण भी यदि इन्सान के दिमाग पर हावी हो या वहां किसी प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़े तो ये भाव मन में हावी होते हैं। जिससे दिमाग में पाए जाने वाले कैमिकल में स्वत: बदलाव आता है। व्यक्ति चाहकर भी इससे नहीं निकाल पाता और सुसाइड जैसे कदम उठाता है।
— डॉ. आर.के. सोलंकी
हैड साइकियाट्री डिपार्टमेंट, एसएमएस मेडिकल कॉलेज