– इसलिए कहते हैं ‘दीपक वाली महिला..’
फ्लोरेंस लाइटिंगेल की बात करना आज इसलिए भी जरूरी है। क्योंकि लाइटिंगेल ने ही दुनिया में संक्रामक रोगों का डेटा इकट्ठा करने की पहल शुरू करी थी। जो आज चिकित्सा जगत में बहुत काम आ रही है। आज से करीब 200 वर्ष पहले इटली के फ्लोरेंस में जन्मीं नाइटिंगेल पूरी दुनिया में सेवा की एक मिसाल बन जाएगी, शायद ही किसी सोचा होगा। 1820 में एक संपंन्न परिवार में जन्म लेने के उपरांत महज 25 वर्ष की युवावस्था में उसने जीवनभर दूसरों की सेवा करने का प्रण ले लिया था। नतीजा ये निकला कि उन्हें आधुनिक नर्सिंग का जन्मदाता कहा गया। इसलिए आज दुनिया उनके जन्मदिवस को अंतरराष्ट्रीय नर्स डे के रूप में मनाती है।
गणितज्ञ से यूं बनी नर्स :
नाइटिंगेल गणित में बहुत तेज थीं और डेटा साइंस में तो एकदम जीनियस। मगर कॉलेज के समय उनके मन में सेवा का ऐसा भाव पैदा हुआ कि माता-पिता के लाख मना करने के बाद भी वह नहीं मानीं। जिद को देख आखिर पेरेंट्स ने भी ट्रेनिंग के लिए जर्मनी जाने की अनुमति दे ही दी। तब रोम में उन्होंने नर्सों को दिए जाने वाले प्रशिक्षण का लाभ लिया। यह बात करीब 1845 के लगभग की रही होगी। जब नाइटिंगेल ने अपना मन नर्स बनने का बनाया। तब वह महज 25 साल की थीं।
उनका दिमाग इतना तेज था कि उन्होंने 1844 में ही चिकित्सा सुविधा और व्यवस्थाओं को कैसे ठीक किया जाए। इसके लिए पूरा प्लान तैयार करके रखा हुआ था। प्रशिक्षण के उपरांत उन्होंने पूरे यूरोप की यात्रा की। इस यात्रा में उन्होंने ऐसे लोगों को तलाशा जो उनकी तरह ही रोगियों की सेवा करना चाहते थे।
जब रक्षा मंत्री ने उनसे मदद मांगी :
ये बात है करीब 1853 की जब क्रीमिया युद्ध का दौर चल रहा था। इधर नाइटिंगेल ने यूरोप की यात्रा से कुछ अपने जैसे सेवाभावी लोगों की लिस्ट तैयार कर ली थी और वह एक संस्था का संचालन भी करने लगी थीं। करीब 1854 में जब क्रीमिया युद्ध के दौरान घायल सैनिकों की मदद के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री ने सबसे पहले उनकी संस्था से मदद मांगी। क्योंकि यह पहला मौका था जब ब्रिटेन ने महिलाओं को सेना में भर्ती किया था।
तब नाइटिंगेल ने करीब 38 प्रशिक्षित महिला नर्सों का एक दल तुर्की के लिए भेजा। जिसमें वह खुद भी शामिल थीं। इस दरम्यान उन्होंने सैनिकों की स्वास्थ्य सुरक्षा एवं व्यवस्थाओं को लेकर जो परिर्वन किए। वही आगे चलकर आधुनिक नर्सिंग की परिपाटी बन गए।
इसलिए कहते हैं दीपक वाली महिला :
क्रीमिया युद्ध के समय घायल सैनिकों की देखभाल के लिए जब सभी डॉक्टर थक जाते थे तो वह रात को लैंप की रोशनी में उनका उपचार किया करती थीं। इसीलिए उनका नाम लेडी विद द लैंप पड़ा। आज भी उनके सम्मान में नर्सिंग की शपथ हाथ में लैंप लेकर ली जाती है। जिसे नाइटिंगेल प्लेज भी कहते हैं।
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1859 में नाइटिंगेल प्रशिक्षण स्कूल की शुरुआत की। इसी बीच नोट्स ऑन नर्सिंग नाम की प्रसिद्ध पुस्तक भी लिखी। इसके बाद का समय उन्होंने नर्सिंग को आधुनिक रूप देकर कैसे आगे बढ़ाया जाए, इसी में लगाया। करीब 1869 में उन्हें महारानी विक्टोरिया ने रॉयल रेड क्रॉस से सम्मानित किया था। वहीं ऑर्डर ऑफ मेरिट सम्मान पाने वाली वह सबसे पहली महिला थीं। 1910 में 90 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। सेंट मार्गरेट्स गिरिजाघर परिसर में ही नाइटिंगेल की कब्र मौजूद है।