— किसानों के लिए कितनी कारगर, जानें..
रेल मंत्रालय की ओर से शुक्रवार को देश की पहली किसान रेल शुरू की गई। जो महाराष्ट्र के देवलाली से बिहार के दानापुर तक चलेगी। फिलहाल इस ट्रेन को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया है। इस ट्रेन को चलाने के उद्देश्य को लेकर रेल मंत्री पीयूष गोयल का कहना है कि ‘किसान रेल’ दूध, फल, सब्जी जैसी जल्दी खराब हो जाने वाली चीजों को बाजार तक पहुंचाने के साथ ही नेशनल कोल्ड सप्लाई चेन को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
ये रहेगा रूट और टाइमिंग :
किसान रेल प्रत्येक शुक्रवार को महाराष्ट्र के देवलाली से सुबह 11 बजे रवाना होकर शनिवार की शाम 6:45 पर बिहार के दानापुर पहुंचेगी। मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश होते हुए ट्रेन की यह यात्रा करीब 1500 किलोमीटर की होगी। जिसे करीब 32 घंटे के अंतराल में तय कर लिया जाएगा। बता दें कि इस दौरान ट्रेन का करीब 14 स्टेशनों पर ठहराव रखा गया है। ताकि किसान अपना सामान उतार और चढ़ा सकें।
बजट में की गई थी घोषणा :
इस किसान रेल परियोजना का जिक्र आपने फरवरी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण में भी सुना होगा। जिस पर अब रेल मंत्रालय ने अमल करना शुरू कर दिया है और इसके पहले पायलट प्रोजेक्ट को 7 अगस्त को हरी झंडी दे दी गई। बता दें कि फिलहाल इस ट्रेन में डिब्बों की संख्या 10 रखी गई है मगर आवश्यकता पड़ने पर इन्हें घटाया बढ़ाया जा सकेगा।
किसानों के लिए कितनी कारगर?
रेल मंत्रालय की ओर से शुरू की गई यह परियोजना किसानों के लिए असल रूप में कितनी कारगर सिद्ध होगी ये तो आने वाला वक्त बताएगा। मगर इस परियोजना की शुरुआत को लेकर सरकार पर कई सवाल खड़े होने लग गए हैं। जानकारों का कहना है कि सरकार की ओर से शुरू की गई यह किसान रेल परियोजना महाराष्ट्र से बिहार के लिए है। ऐसे में देखा जाए तो बिहार इन उत्पादों में से किसी के लिए भी एक बड़ा बाजार नहीं दिख रहा। साथ ही वह इन उत्पादों का कोई बड़ा पोषक भी नहीं रहा है। ऐसे में ट्रेन के गंतव्य निर्धारण के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
इनकी होगी बचत :
किसान रेल परियोजना के माध्यम से सब्जी और फलों में होने वाली छीजत तो कम होगी ही साथ ही बाजार तक पहुंचने वाले समय में भी काफी हद तक कटौती देखने को मिलेगी। बता दें कि फिलहाल इनका ट्रांसपोर्टेशन सड़क मार्ग द्वारा किया जाता है। जिसमें कई कारणों से समय भी अधिक लग जाता है और उसकी वजह से सामान की छीजत भी बढ़ जाती है। इसका खामियाजा उत्पादक एवं ग्राहक दोनों को ही भुगतना पड़ता है।