दिल्ली में भड़के दंगों से कैसे परिवार के परिवार बिखर गए इसका एक उदाहरण दिवंगत वीरभान सिंह का परिवार भी है। दो दिन से बेटी मां को यही कह रही है कि ‘मां तुम रोना नहीं पापा जल्दी घर आ जाएंगे।’ लेकिन उन्हें कौन बताए कि नफरत आंधी उनके सिर से पिता का साया हमेशा के लिए उड़ा ले गई जो अब कभी वापस नहीं आ पाएंगे। मृतक वीरभान मूलत: भरतपुर के रहने वाले थे और पिछले 20-25 सालों से दिल्ली के सीलमपुर में कपड़े का काम किया करते थे।
उनके परिवार में एक बेटा दो बेटी और उनकी पत्नी हैं। वह अपने परिवार के साथ ही रहते थे। हाल ही में उन्होंने मौजपुर में नया मकान लिया था और 3 महीने पहले ही बड़ी बेटी के हाथ पीले किए थे। उनकी मौत की खबर सुनने के बाद से उनके परिवार का रो-रो कर बुरा हाल है। करीब 3 दिन हो गए, अभी तक उनकी पार्थिव देह भी परिवार को नहीं मिल पाई है।
परिवार वालों का कहना है कि पड़ौस के एक मकान में रात को उपद्रवी आग लगाकर चले गए। जब उन्हें चीखने पुकारने की आवाजें सुनाईं दीं तो वह अपने आप को रोक नहीं पाए और वह उस परिवार की मदद के लिए कॉलोनी के ही एक दो लोगों के साथ उसके घर पहुंच गए। वह पहुंचे ही थे कि इतनी देर में उपद्रवी फायरिंग करते हुए वापस आ गए और इसी दौरान एक गोली सीधे उनके सिर में लग गई और उन्होंने वहीं दम तोड़ दिया।
उन्हें क्या पता था कि मदद करने की इतनी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। करीबी लोगों से मिली जानकारी के अनुसार वह बहुत ही मिलनसार व्यक्ति थे। हमेशा सबकी मदद करके चलते थे। घर में वही एक कमाने वाले थे। रो-रो कर पत्नी का बुरा हाल है, कहती हैं जब इंसानियत ही नहीं बची हो तो किससे कहें और क्या कहें? कभी सोचा नहीं था कि भला करने का ये अंजाम भुगतना पड़ता है।