देशभर में इन दिनों केरल की दिवंगत गर्भवती हथिनी की चर्चा जोरों पर है। लोगों में इस घटना को लेकर बेहद आक्रोश है। लेकिन इससे भी बड़ा मामला इन दिनों हिमाचल प्रदेश से निकलकर आया है। जहां साल 2020 में बंदरों को मारने की अनुमति खुद सरकार ने ही दे डाली है। हैरानी की बात ये है कि इन आदेशों पर केंद्र सरकार भी सहमति दे चुका है। ताज्जुब इस बात का भी है कि इन आदेशों को लेकर किसी प्रकार का कोई आक्रोश न तो प्रदेश में देखने को मिला और न ही देश में। फिर हथिनी की मौत पर इतना हंगामा क्यों? क्या देश में हथिनी की मौत को लेकर भी राजनीति हो रही है?
राजस्थान के सोशल एक्टिविस्ट एवं लेखक पंचशील जैन का कहना है कि भारत जहां वानरों को धर्म के साथ जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में हिमाचल सरकार इस तरह के आदेश कैसे दे सकती है! उन्होंने बताया कि राजस्थान के लाडनूं में एक वानर की मौत करंट लगने से हो गई थी। वर्तमान में वहां ‘करंट बालाजी’ के नाम से भव्य मंदिर बना हुआ है।
सूबे की 91 तहसीलों के लिए निकाले आदेश :
हिमाचल प्रदेश में 91 तहसीलों के भीतर बंदरों को मारने के आदेश जारी हुए हैं। यहां बंदरों को अब केंद्र सरकार ने भी ‘वर्मिन’ घोषित कर दिया है। इन क्षेत्रों में मंडी जिले की 10 तहसीलों को वर्मिन क्षेत्र घोषित किया गया है। वर्मिन का मतलब होता है कि जो कीट अथवा जानवर हानिकारक हो जाए तो उसे इस श्रेणी में मानकर लोगों को उन्हें मारने की अनुमति मिल जाती है। हालांकि यह आदेश वन्य क्षेत्रों के अंदर लागू नहीं होता। लेकिन रिहायशी इलाकों में यानि अपनी निजी जमीन पर इनको मारने पर किसी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं है।
2019 में की गई थी नसबंदी :
हिमाचल में ही बीते साल बंदरों को जहर देकर मारने की घटनाएं खूब देखी गई थीं। कुफरी में मारे गए बंदरों की रिपोर्ट अभी तक नहीं आ पाई। वहीं पिछले साल करीब 8 केंद्रों पर डेढ़ लाख से भी ज्यादा बंदरों की नसबंदी की गई थी। बताया जाता है कि 1 बंदर को पकड़ने पर सरकार 1 हजार रुपए भी देती है। प्रदेश में बंदरों की कुल संख्या 3 लाख के करीब है।
स्थानीय लोगों का तर्क :
यहां के लोगों का कहना है कि बंदर उनकी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। वहीं रिहायशी इलाकों में लोगों को काटने की घटनाएं आम हैं। शिमला में रोज 8 से 10 लोगों के बंदर काटने की खबर मिलती है। इसलिए उन्हें मारने की जरूरत पड़ती है।