Corona Vaccine 2020 : कोरोना कहर के बीच एक गुड न्यूज सामने आई है और ये गुड न्यूज कोरोना की वैक्सीन से जुड़ी हुई है। फार्मा कंपनी फाईजर Pfizer ने अपने तीनों ट्रायल्स को पूरा करते हुए वैक्सीन बनाने का दावा किया है। इतना ही नहीं कंपनी का ये भी दावा है कि ये वैक्सीन 95 कोरोना मरीजों पर 95 फीसदी तक असरकारक है साथ ही उम्रदराज लोगों पर भी इसके अच्छे परिणाम देखे गए हैं।
फाइजर अमेरिका की फार्मा कंपनी है और जर्मनी की बायोंटेक कंपनी BioNtech के साथ मिलकर इस वैक्सीन का निर्माण किया है। बताया ये भी जा रहा है कि इसमें चीन की फोसुन फार्मा कंपनी भी कुछ समय साथ रही थी और तीनों ने मिलकर इसे तैयार करने का बीडा उठाया था। मगर फाइजर ने जर्मन कंपनी बायोंटेक का नाम तो जोड़ा है, लेकिन फोसुन का नाम देखने नहीं मिला।
फार्मा कंपनी फाइजर का कहना है कि उसकी वैक्सीन सुरक्षा मानकों पर पूरी तरह से खरी उतरी है। साथ ही हरेक आयु वर्ग के लिए यह कारगर साबित हुई है। कंपनी का कहना है कि उसने आखिरी ट्रायल करीब 44000 लोगों पर किया है। बता दें कि 27 जुलाई को कंपनी ने अपना तीसरा और आखिरी ट्रायल शुरू किया था जो अब सफलता पूर्वक पूरा कर लिया गया है। कंपनी ने अक्टूबर 2020 तक इसे पूरा करने की बात कही थी मगर इसे नवंबर 2020 में पूरा कर लिया गया है।
अब सरकार से परमिशन की देरी :
Pfizer की मानें तो कंपनी अगले कुछ ही दिनों में यूएस एफडीए (USFDA) से वैक्सीन के इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत मांग सकती है। कंपनी वर्ष 2020 के अंत तक वैक्सीन के 5 करोड़ डोज और 2021 के अंत तक कंपनी 130 करोड़ डोज तैयार करने की योजना है।
ये है नकारात्मक प्रभाव :
फाइजर ने वैक्सीन की सफलता के बाद ये भी स्वीकार किया है कि उसके द्वारा तैयार की गई इस वैक्सीन का एकमात्र नकारात्मक प्रभाव भी है और वो है लोगों में थकावट (fatigue) महसूस करना। यानी ट्रायल में सेकेंड डोज लेने के बाद करीब 3.7% लोगों को थकान महसूस हुई। इसके अलावा कुछ बुजुर्ग मरीजों को टीका देने के बाद हल्के बुखार की शिकायत भी देखने को मिली।
इस तरह करती है काम :
Pfizer की mRNA आधारित यह वैक्सीन BNT162b2 65 साल की उम्र से ज्यादा के लोगों पर वैक्सीन 94% से ज्यादा असरदार पाई गई। mRNA तकनीक में वायरस के जिनोम का प्रयोग कर कृत्रिम RNA बनाया जाता है जो सेल्स में जाकर उन्हें कोरोना वायरस की स्पाइक प्रोटीन बनाने का निर्देश देता है। इन स्पाइक प्रोटीन की पहचान कर सेल्स कोरोना की एंटीबॉडीज बनाने लग जाती हैं।