सालों से पीड़ित भंवरीबाई भटेरी ने महिला अधिकारों के लिए समर्पित इस सम्मेलन को 5 हजार रुपये की राशि चंदे के रूप में प्रदान की। रकम ज्यादा नहीं थी मगर सालों से पीड़ित और न्याय न मिलने के टैग के साथ संदेश बड़ा दे दिया। मौका था भारतीय महिला फेडरेशन की ओर से रवींद्रमंच पर आयोजित 21वें सम्मेलन में रविवार को राज्यों की रिपोर्ट के साथ राष्ट्रीयस्तर पर की गई गतिविधियों की रिपोर्ट पर चर्चा हुई।
सम्मेलन की शुरुआत में राष्ट्रीय महासचिव एनी राजा ने पिछले 3 सालों की फेडरेशन की गतिविधियों की रिपोर्ट प्रस्तुत की। जिसमें मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों का विस्तृत विश्लेषण किया किया गया और केंद्र में स्थित बीजेपी सरकार ने राज्यों के और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन एनआरसी-एनपीआर के जरिए लोगों की पहचान पर शंका व्यक्त करना आदि मुद्दों का विस्तृत विश्लेषण किया।
महासचिव की रिपोर्ट के बाद सभी राज्यों ने सिलसिलेवार अपने-अपने संघर्ष की रिपोर्ट प्रस्तुत की। आंध्रप्रदेश राज्य में जहां एक तरफ NFIW संगठन ही खाद्य सुरक्षा व नरेगा कानूनों के क्रियान्वयन की बात को लेकर अनेक आंदोलन किये। साथ ही प्रदेश भर में अन्य महिला संगठनों के साथ शराबबंदी आंदोलन चलाया। आसाम में NRC और CAA के विरोध में यहां की कार्यकर्ता अभी भी आंदोलित हैं लेकिन वे आंदोलन को अहिंसात्मक बनाये रखने और पुलिस दमन से बचाने में अपनी भूमिका निभा रही हैं।
केरल में सबरीमाला में महिलाओं के उच्चतम न्यायालय द्वारा अधिकार दिए जाने के बाद प्रवेश हेतु 56 लाख महिलाओं ने मिलकर महिलाओं से भेदभाव के विरोध में दीवार बनाई। मणिपुर की महिलाओं का इतिहास खाद्य सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। ब्रिटिश शासन के विरुद्ध लुप्पिलाल आंदोलन आज भी जीवित है अभी भी औरतें अपनी जमीनों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नहीं बेच रही हैं। पंजाब, हरियाणा, गुजरात, ओडिशा, झारखंड और अन्य में बातें अमन की यात्रा और मैत्रेयी यात्रा की गई।
कश्मीर से आई महिलाएं फफक पड़ी जब उन्होंने अपने संघर्षों का मंच पर बखान किया। उन्होंने कहा कि वह इस सम्मेलन में देश को एकजुट करने और कश्मीर की बात रखने के लिए आई हैं।