जयपुर में चल रहे जेएलएफ यानि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के दूसरे दिन शुक्रवार को गायक शुभा मुद्गल ने अपने सेशन में नवोदित सिंगर्स की पीड़ा का मुद्दा उठाया। उन्होंने उनके कॅरियर को लेकर भी चिंता व्यक्त की। आगे उन्होंने और क्या-क्या बातें कहीं, इससे पहले हम यह जान लेते हैं कि आखिर शुभा मुद्गल कौन हैं?
ये हैं शुभा मुद्गल :
शुभा मुद्गल जिनका 1949 में हुआ। ये भारत की एक प्रसिद्ध शास्त्रीय संगीत, खयाल, ठुमरी, दादरा और प्रचलित पॉप संगीत गायिका हैं। 1996 में इन्हें ‘अमृत बीज’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गैर-फीचर फिल्म संगीत निर्देशन का नेशनल अवार्ड मिला था। इसके अलावा 1997 में संगीत में विशेष योगदान हेतु ‘गोल्ड प्लाक अवार्ड’ 34वें शिकागो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म उत्सव में उनकी फिल्म ‘डांस ऑफ द विंड’ के लिए मिल चुका है। इतना ही नहीं इन्हें 2000 में इन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है।
शुक्रवार को सुधा सदानंद के साथ अपनी पुस्तक पर बात करते हुए कहा कि आज के रियलिटीज शोज में कई अच्छे सिंगर पार्टिसिपेट करते हैं मगर सालभर बाद वो कहां गायब हो जाते हैं किसी को नहीं पता। इसके साथ ही उन्होंने रियलिटीज शोज में जजों को अनफेयर बताते हुए कहा कि वह सिंगर्स के टैलेंट के साथ एक तरह से खिलवाड़ कर रहे हैं। शो खत्म होने के बाद कोई जज उनसे नहीं पूछता कि कौन पार्टिसिपेंट्स क्या कर रहा है।
इस दौरान उन्होंने श्रोताओं की फरमाइश पर ये गीत भी सुनाए कि..
सीखो ना नैंनो की भाषा पिया
कह रही तुमसे यह खामोशियां
सीखो ना, लब तो ना खोलूंगी मैं
समझो दिल की बोली
सीखो ना नैनो की भाषा पिया
अब के सावन ऐसे बरसे,
बह जाए रंग मेरी चुनर से
भीगे तन मन जियरा तरसे,
जम के बरसे जरा
रुत सावन की, घटा सावन की,
घटा सावन की, ऐसे जमके बरसे
अब के सावन ऐसे बरसे,
हे बह जाये रंग मेरी चुनर से
भीगे तन मन जियरा तरसे,
जम के बरसे जरा..