साल 2020 में अब कुछ ही दिन बचे हैं। वैसे तो ये पूरा साल ही कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गया। इस दौरान कई प्रकार की चुनौतियां भी आईं। प्रवासी मजदूरों के सैकड़ों किलोमीटर पैदल पलायन की तस्वीरें हमारे जहन में हमेशा रहेंगीं। इनमें सबसे अहम चुनौती लॉकडाउन Lockdown की रही। जिसने देश की पूरी अर्थव्यवस्था को लगभग चौपट कर दिया, लेकिन इसके अलावा भी साल 2020 में बहुत कुछ हुआ। साल 2020 ने देश में दंगे देखे, कई बड़े विरोध प्रदर्शनों को झेला। वहीं किसानों का प्रदर्शन वर्तमान में भी जारी है। तो चलिए जानते हैं देश की उन 10 बड़ी घटनाओं के बारे में जो इस साल हुईं..
1)- दिल्ली दंगे, सीएए और शाहीनबाग
साल 2019 के अंत में संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक CAB पेश किया गया। जिसे संसद में मंजूरी मिली और इसके बाद सीएबी कानून बन गया। कानून का रूप लेते ही पूर्वोत्तर से सीएए के विरोध में आवाजें उठने लगीं और यही आवाजें आगे चलकर फरवरी 2020 में दिल्ली दंगों के रूप में सामने आईं। इस दौरान शाहीनबाग में बीच सड़क पर लंबे समय तक चले प्रदर्शन ने भी खूब सुर्खियां बटोरी।
इसी प्रदर्शन में 82 साल की बिलकिस दादी को टाइम मैग्जीन में स्थान मिला। बिलकिस बानो को 100 प्रभावशाली लोगों की सूची में शामिल किया गया। वहीं उसके बाद भड़के दंगों 50 से ज्यादा लोगों की जानें चली गईं और न जाने कितने ही लोग घायल हुए। इनमें से कई घर ऐसे होंगे, जिन्हें ये दंगे ताउम्र याद रहेंगे।
2- कोरोना और तबलीगी जमात
कोरोनावायरस ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। देखते ही देखते दुनिया के लगभग अधिकांश देश इस महामारी की चपेट में आ गए। देश की बात करें तो जल्द ही संक्रमण के मामलों की संख्या 1 करोड़ को पार करने वाली है। देश-दुनिया की निगाहें अब कोरोना महामारी के वैक्सीन पर टिकी हैं। कोरोना की बात हो और मरकज का नाम न आए, ऐसा भला कैसे हो सकता है।
दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित मरकज में मार्च 2020 में तबलीगी जमात का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसमें देश और विदेश से हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए। जब इन जमातियों में कई लोगों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो इनमें से कई जमाती क्वारेंटाइन होने के बजाय देश के विभिन्न स्थानों पर पहुंच गए और बाद में वहां से भी संक्रमण की खबरें सामने आईं। ऐसे में तबलीगी जमात और मरकज का नाम खूब चर्चा में रहा, यहां तक की संसद में भी इस मुद्दे को उठाया गया।
3)- निर्भया को न्याय, दोषियों को फांसी
साल 2012 में दिल्ली के अंदर हुई सामूहिक बलात्कार की घटना ने पूरे देश को झकझोर के रख दिया था। इसे निर्भया नाम दिया गया। करीब 7 साल चले इस मामले पर मार्च 2020 को चारों आरोपी मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय सिंह को फांसी पर लटका दिया। इस दौरान जल्लाद के काम और नाम दोनों की खूब चर्चा हुई। बता दें कि इससे पहले ही 2013 में निर्भया के एक दोषी राम सिंह ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी।
4- राम मंदिर शिलान्यास
साल 2020 में वर्षों से लंबित एक ऐतिहासिक फैसला हुआ और वो था राम मंदिर से जुड़े निर्माण का। अगस्त 2020 में राम मंदिर निर्माण की आधारशिला रखी गई। बता दें कि इस मंदिर को इस प्रकार से बनाया जा रहा है ताकि अनेक सालों तक भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं का इस कोई असर न हो। इसके निर्माण में प्राचीन पद्धति का प्रयोग किया जा रहा है। अनुमान है कि इसे महज 3 साल के भीतर पूरा कर लिया जाएगा।
5)- सुशांत सिंह राजपूत की मौत
साल 2020 में कई बड़े लोगों की जानें गईं और कई फिल्म इंडस्ट्री के लोगों की सुसाइड की खबरें आईं, लेकिन एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने बॉलीवुड के साथ-साथ पूरे देश को हिलाकर रख दिया। सुशांत की मौत की जांच मुंबई पुलिस से सीबीआई तक पहुंच गई मगर अभी तक ये एक गुत्थी बनी हुई है कि आखिर सुशांत की मौत हत्या थी या फिर आत्महत्या? हालांकि एम्स की रिपोर्ट के मुताबिक आत्महत्या होना बताया गया, लेकिन परिवार के लोग ये मानने को तैयार नहीं हैं। वहीं सुशांत ने इतना बड़ा कदम क्यों उठाया इस बात से पर्दा उठना अभी बाकी है।
इस दौरान सुशांत की मौत के जांच का दायरा पहले रिया चक्रवर्ती तक पहुंचा और फिर यहां से एनसीबी के पास पहुंचा। बाद में इसने ड्रग्स का एंगल ले लिया और फिर शुरू हुईं गिरफ्तारियां। एक के बाद एक कई बड़े एक्टर एक्ट्रेस से पूछताछ हुई। कई सेलिब्रिटीज पर एफआईआर दर्ज हुई। इससे पहले वंशवाद बनाम बाहरी का मुद्दा भी खूब उछला, जिसे नेपोटिज्म की संज्ञा दी गई।
6)- चौपट अर्थव्यवस्था की बात
अर्थव्यवस्था के लिहाज से साल 2020 काफी खराब रहा। पहले से सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था की कमर कोरोनावायरस ने तोड़कर रख दी। इस दौरान देशभर में लगाए गए लॉकडाउन ने आर्थिक गतिविधियों को चौपट कर दिया। यही कारण रहा कि वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में जीडीपी के भीतर रिकॉर्ड 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। वहीं अब दूसरी तिमाही (जुलाई-सितंबर) में जीडीपी में 7.5 प्रतिशत का संकुचन देखा गया।
7)- गलवान में भारत-चीन झड़प
भारत के साथ सीमा विवाद को लेकर चीन ने गलवान घाटी में सैनिकों की तैनाती बढ़ा दी। ऐसे में भारत ने भी सख्त रुख अपनाते हुए जवाब में अपनी सैन्य टुकड़ियों को तैनात कर दिया। 15-16 जून की दरमियानी रात को गलवान घाटी में चीन ने धोखे से निहत्थे भारतीय सैनिकों पर हमला कर दिया। इस झड़प में भारत के 20 जवानों की शहादत हुई। चीन को भी जान-माल का बड़ा नुकसान हुआ। जैसे ही ये खबर सार्वजनिक हुई तो देश के भीतर कोहराम मच गया और चीनी सामान के बहिष्कार को लेकर देशभर में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन देखे गए। इस संबंध में दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत हुई मगर अभी तक इसका कोई समाधान नहीं निकल पाया है।
8- मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन
साल 2020 में राजनीति को लेकर भी कई बड़ी उथल-पुथल देखी गईं। जिनमें से एक मध्य प्रदेश के भीतर देखी गई। यहां कांग्रेस की बनी हुई सरकार को कांग्रेस के ही लोगों ने गिरा दिया। जी हां, राहुल गांधी के भरोसेमंद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का साथ छोड़कर जब बीजेपी का हाथ थामा तो कांग्रेस में एक के बाद कई विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। सात दिन के भीतर की कमलनाथ की सरकार गिर गई। राज्य में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए। इनमें बीजेपी ने 19 सीटें जीतकर सत्ता बचा ली वहीं विपक्षी दल कांग्रेस केवल 9 सीटें ही जीत पाई। इधर हाल ही में कमलनाथ ने राजनीति से संन्यास लेने का भी इशारा कर दिया है।
9)- बिहार विधानसभा चुनाव
इस साल बिहार में हुए विधानसभा चुनाव जहां खासे उत्साहित रहे वहीं पार्टियों के बीच खासी गहमागहमी भी देखी गई। इस बार बिहार में सत्ता परिवर्तन का बिगुल बजा रहे लोगों की हवा उस वक्त निकल गई जब बीजेपी को जेडीयू से ज्यादा सीटें हासिल हुईं। सीएम की कुर्सी का सपना देख रहे तेजस्वी यादव ने चुनावों में रैलियों के नए कीर्तिमान स्थापित किए। एक दिन में सर्वाधिक रैलियां करने का भी रिकॉर्ड बनाया, लेकिन सत्ता की चाबी नहीं पकड़ पाए। एनडीए से बगावत कर अकेले चुनाव लड़ने वाली लोजपा को भी 1 सीट पर संतोष करना पड़ा।
10)- किसान आंदोलन
कड़कड़ाती ठंड में भी किसान आंदोलन ने केंद्र सरकार के पसीने छुड़ा दिए हैं। केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान काफी समय से आंदोलन कर थे। सितंबर 2020 में मोदी सरकार 3 नए कृषि विधेयक लेकर आई जो संसद की मंजूरी और राष्ट्रपति की मुहर के बाद कानून बन गए। इन्हीं कानूनों के विरोध में किसान राजधानी के चारों तरफ डेरा डाले हुए हैं।
किसान संगठन और सरकार के बीच कई दौर की वार्ता हो चुकी है, मगर अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है। किसानों को इन कानूनों से फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म हो जाने का डर सता रहा है। वहीं अब इस आंदोलन के तरीके को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी लगाई जा चुकी है।