जहां एक ओर शीतलहर से देशभर ठिठुर रहा है, वहीं दूसरी ओर चुनावों के कारण राजनीति गरमाई हुई है। हाल ही में झारखंड राज्य के चुनावों का परिणाम घोषित हुआ है, जो सबके बीच में चर्चा का विषय बना हुआ है। वो इसलिए क्योंकि इस बार चुनाव का नतीजा बीजेपी के नहीं बल्कि कांग्रेस, झामुमो और राजद के गठबंधन की सरकार के पक्ष में आया है। इस महागठबंधन को 47 सीटों पर जीत मिली है। जीत के ही साथ झामुमो के हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री के तौर पर चुना गया है।
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के हेमंत सोरेन का जन्म झारखंड के रामगढ़ जिले में हुआ था। उनके पिता शिबू सोरेन झारखंड मुक्ति मिर्चा के अध्यक्ष होने के साथ तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। हेमन्त भी 2013 में झारखंड के 5वें मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इसके अलावा वो 2010 में अर्जुन मुंडे की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी रहे थे। आपको बता दें कि यह सरकार बीजेपी और झामुमो की सांझा तौर पर बनाई गई थी, जिसमें आधी-आधी अवधि के लिए मुख्यमंत्री का फॉर्मूला बनाया था। कुछ अनबन की वजह से यह गठबंधन आधे में ही टूट गया।
12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद हेमंत ने रांची के बिरला इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी मेसरा में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया था। लेकिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई को बीच में छोड़ हेमंत ने अपने पिता के कदमों पर चलने का फैसला किया। उन्होंने 2003 में छात्र मोर्चे से राजनीति में अपना पहला कदम बढ़ाया। वर्ष 2009 में उनके बड़े भाई दुर्गा सोरेन की मौत के बाद उन्होंने पूरी तरह राजनीति में आने का निर्णय किया। वो 2009 से 2010 तक राज्यसभा के सदस्य रहकर पार्टी का नेतृत्व भी कर चुके हैं।
2014 में हुए विधानसभा चुनावों में हेमंत के नेतृत्व में झामुमो ने चुनाव लड़ 19 सीटें हासिल की थी। वो मुख्यमंत्री तो नहीं बन पाए लेकिन 19 सीटों की वजह से उन्हें झारखंड विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता बनने का मौका मिला। इस मौके को अच्छे से इस्तेमाल करते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री रघुवर दास की सरकार के भूमि अधिग्रहण कानून के संशोधन का जोरशोर से विरोध किया।
उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी को सबके साथ जोड़ने के लिए नई तकनीकों को अपनाया। जिसमें सोशल मीडिया पर सक्रियता सबसे अहम कदम था। इसके अलावा उन्होंने मीडिया से होने वाली चर्चा को बढ़ाने के साथ अनेकों रैलियों का आयोजन करवाया। जिसका असर चुनाव के नतीजों साफ दिख रहा है।
हेमंत सोरेन की सादगी और आम लोगों के मुद्दों को महत्व देने की सोच उन्हें सबसे खास बनाती है। उन्होंने झारखंड के 5वें मुख्यमंत्री रहते हुए महिलाओं को नौकरियों में 50 प्रतिशत आरक्षण देने जैसे अहम निर्णय लिए थे। ऐसे ही इस बार उन्होंने जल, जंगल और जमीन के मुद्दों पर चुनाव लड़ा है। आदिवासियों को अपना बनाकर उनके जमीन संबंधी मुद्दों को उठाया और पिछड़ी जातियों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण दिलाने के वादे भी किये हैं।