‘बच्चा काबिल बनो-काबिल, सफलता तो झक मार के पीछे आएगी।’ यह डायलॉग यूं तो फिल्मी है, लेकिन इसे असल जिंदगी में फिर से सिद्ध कर दिखाया है किरपाल कजाक ने। किरपाल कजाक को 2019 के साहित्य अकादमी पुरस्कार के लिए चुना गया है। पंजाब के 76 वर्षीय कहानीकार प्रो. किरपाल कजाक को यह पुरस्कार लघु कथा श्रेणी में पंजाबी के लिए दिया जाएगा।
किरपाल का जन्म पाकिस्तान के शेखूपुरा में 1943 में एक गरीब परिवार में हुआ था। इनके पिता साधू सिंह पेशे से राजमिस्त्री थे। बंटवारे के बाद परिवार पटियाला आ गया। तब पिता ने गरीबी के कारण साथ काम करने के लिए कहा। जिससे वे नाराज हो घर से भाग गए। इस दौरान जेबकतरों, खानाबदोशों और देश के विभिन्न आदिवासी कबीलों के लोगों के साथ रहे।
किरपाल सिंह का मन पढ़ाई में कम होने के कारण वे 9वीं तक ही पढ़े। घर से भागने के दौरान उन्हें खुद के बारे में जानने का मौका मिला। वहीं लगभग 10 साल में वे कई बार घर से भागे। इस बीच होने वाले अनुभवों को
लगातार लिखते भी रहे। 1970 में पिता की मौत के बाद मजबूरन उन्हें मजदूरी आदि काम करने पड़े। इस बीच उन्हें पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला में छोटी सी नौकरी मिल गई। इस दौरान वे अमृता प्रीतम से मिले, जिन्होंने उन्हें इन यादों को किताब बनाने की प्रेरणा दी। तब कजाक की रचनाओं में उनकी प्रतिभा देख सभी हैरान रह गए।
प्रतिभा के आधार पर ही नौवीं पास होने पर भी पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला ने उन्हें सीधे प्रोफेसर के पद पर नियुक्त कर दिया। हालांकि डेढ़ माह ही वह इस पद पर रहे और 2002 में रिटायर हो गए। किरपाल का कहना है कि उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि वे लेखक बनेंगे। पिता राजमिस्त्री के साथ अरबी फारसी के विद्वान भी थे। पिता की प्रेरणा से ही वे साहित्यिक क्षेत्र में आगे बढ़े। किरपाल की अब तक 33 से ज्यादा किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। इन्होंने बच्चों के लिए कहानियां लिखी और संपादन भी किया।
वे भाई वीर सिंह गलप पुरस्कार, पंजाबी रंगमंच पुरस्कार, परम साहित्य सत्कार सम्मान, पंजाब सरकार की ओर से स्टेट अवार्ड सहित कई अवार्ड प्राप्त कर चुके हैं।