एक नौजवान साथी जो 25 साल की उम्र में सांसद बने। 26 साल में केंद्रीय मंत्री बन गए और 32 साल में प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए। इसके बाद डिप्टी सीएम का भी पद मिल गया। कहने का मतलब है कि 10-12 साल के गेम में आप सब कुछ बन गए। राजनीति में ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है। इतना सब बनने के बाद उन्होंने जिस प्रकार का खेल खेला वो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। आज हाइकोर्ट में सुनवाई के बाद सीएम अशोक गहलोत ने मीडिया से बातचीत में ये सब बातें कहीं। इस दौरान उन्होंने स्पष्ट लहजे में ये भी कहा कि वो भी यहां बैंगन बेचने के लिए नहीं आए हैं। मुख्यमंत्री बनने के लिए आए हैं।
मासूम चेहरा, हिंदी-अंग्रेजी बोलने में अच्छी पकड़, यकीन नहीं होता था कि ये व्यक्ति ऐसा कुछ कर सकता है। मीडिया को इंप्रैस कर रखा है पूरे देश के अंदर और खुद को इस तरह से पेश कर रहे हैं कि उन्होंने बहुत मेहनत करी हो और वो ही राजस्थान में गहलोत के लिए राज लेकर आए हैं। गहलोत ने कहा कि जनता सब जानती है कि किसने कितनी मेहनत की, लेकिन फिर भी उन्होंने कभी कोई सवाल न तो खड़ा किया और न ही कभी उनसे पूछा।
7 साल के अंदर देश में राजस्थान पहला ऐसा राज्य होगा जहां प्रदेशाध्यक्ष को उसके पद से हटाने या बदलने को लेकर किसी प्रकार की कोई बयानवाजी या मांग संगठन अथवा सरकार की ओर से उठी हो। एक प्रदेश अध्यक्ष को किस प्रकार से सम्मान दिया जाता है, वो सब उन्हें दिया गया। उसके बाद भी पीठ में छुरा घोंपकर पार्टी से अलग जाने का काम उन्होंने किया है।
सीएम ने कहा ये खेल जो आज चल रहा है ये राज्यसभा चुनावों से पहले ठीक 10 जून को ही हो जाता। हालांकि इस दौरान गहलोत की जुबान थोड़ी फिसल गई और उन्होंने कई बार 10 जून की जगह 10 मार्च बोला। उन्होंने कहा कि 10 जून की रात 2 बजे गाड़ी मानेसर के लिए रवाना होने वाली थी और अगले दिन सुबह पायलट साब की पुण्यतिथि कार्यक्रम के बाद बाकी लोग वहां से सीधे एयरपोर्ट की ओर निकलने वाले थे, लेकिन उन्होंने पायलट के इस प्लान को एक्सपोज कर दिया।