गरीब टैक्सी ड्राइवर, सड़क पर बैठकर व्यवसाय करने वाला यानी हाट या खोमचे वाला या दिहाड़ी पर मजदूरी करने वाला या शादी में पूड़ी बनाने वाली या शहरियों के बंगलो पर काम करने वाली या कुली या खेती मजदूर या बेलदार या प्राइवेट सेक्टर में काम करने चपरासी इत्यादि जैसों का जीने का हक किसी और से कम कैसे है? इन सभी बातों को लेकर पीपल्स ग्रीन पार्टी के अध्यक्ष डॉ. सुधांशु गुप्ता ने समाज के अंदर के कई प्रश्नों को एक आवाज के रूप में उठाते हुए कहा है कि—
क्या वो कम मेहनत करते है? क्या जीडीपी में उनका कोई योगदान नहीं है? ये लोग इनकम टैक्स के अतिरिक्त कौनसा टैक्स नहीं देते? देश और समाज के निर्माण में इनका रोल कम कैसे है?
सिर्फ इसलिए कि ये कोई प्रेशर ग्रुप नहीं है यानी इनमें एकता नहीं है या ये कमज़ोर है और अपनी आवाज नहीं उठाते और ये लोग चुपचाप सिस्टम को नीचे की ओर से उठाते है।
भारत की आर्थिक असमानता एक भयावह सच्चाई है जहां अधिक मेहनत करने वाले पीड़ित बन कर रह गए और मुठ्ठीभर लोगों ने सिस्टम पर कब्जा कर लिया है। देश की 70 फीसदी संपदा पर एक प्रतिशत लोग काबिज हो गए है और गिनती के नेता और नौकरशाहों के साथ इन लोगों ने देश पर कब्जा कर लिया है। बिना काम किये देश के बजट में से ये लोग बतौर वेतन चौथ वसूली कर रहे है शेष बजट का बड़ा हिस्सा भी या तो भ्रष्टाचार की भेंट के रूप में इन्ही के पास लौट कर आ जाता है या मुठ्ठीभर व्यापारिक घराने उस पर हाथ मार लेते है।
ब्यूरोक्रेट्स को सैलरी के नाम पर एक लाख से लेकर दो लाख रुपये तक बांटने का क्या औचित्य है? इसकी रिटर्न ऑन इंवेन्स्टमेंट पर बात क्यों नहीं की जाती? जो तनख्वाह तय करते हैं वो अपनी सैलरी कुछ भी बना सकते हैं? जितना इनका भत्ता उतनी तो औरों की पूरी आय भी नहीं होती। देश की 60 फीसदी आबादी की पारिवारिक आय दस हज़ार से पच्चीस हज़ार रुपए के बीच ही होती है। आधा सरकारी बजट तो एक प्रतिशत लोगों को बतौर सरकारी तनख्वाह में ही वेस्ट हो रहा है।
अब 70-75 प्रतिशत लोग जो मेहनतकश है जैसे गरीब, किसान, मजदूर, दलित, महिलाएं इत्यादि बेहद कम कमा पाते है और लगभग गुलामी के हालात में जी रहे हैं।
यदि ये बिखरे पीड़ित लोग एकत्र होकर अपनी आवाज एक साथ उठा दे तो एक प्रतिशत यानी मुट्ठी भर लोगों की क्या बिसात की इनके वाजिब हक से इन्हें वंचित किया जा सके!
आज के हालात में देश के पैसे पर कुंडली मार कर बैठें लोग बजट बनाते ही ऐसे है कि उसका झुकाव देश के सिर्फ 1-2% लोगों के हित में होता है। फिर उपलब्ध धन और सुविधाओं का असमान वितरण और भ्रष्टाचार रही सही कसर पूरी कर देता है।
हमें देश के भेदभावकारी सिस्टम पर हमला करना होगा। भ्रष्ट नौकरशाही और शासन को मिटाना होगा। कथित माफ़िया समूहों द्वारा स्थापित इनकी सरकारों को ख़त्म करना होगा। हर तरह की बराबरी यानी आर्थिक और सामाजिक बराबरी को इन यथास्थितिवादियों से छीनना होगा।
सबसे पहले तो सभी के लिए कम से कम एक अदद घर और उनकी न्यूनतम रोजी के हक के संघर्ष को जीतना होगा।