राजस्थान में सियासती बादलों की गर्जना हो सकता है नई पीढ़ी के लिए नई चीज हो, खासकर युवा पत्रकार जो अभी के सत्ता संघर्ष को कवर कर रहे हैं। पीपुल्स ग्रीन पार्टी के अध्यक्ष डॉ. सुधांशु ने बताया कि 1987 और 1989 के दरम्यान तत्कालीन सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी में चल रही रस्साकशी की ये दास्तां करीब 30-32 साल पुरानी है। तब भी कुर्सी का किस्सा कुछ ऐसा ही था और बहुत सी घटनाएं भी मिलती जुलती ही थीं।
हां, किरदारों में थोड़ा बदलाव हैं किन्तु थोड़ा ही, ज्यादा नहीं। तब के वरिष्ठ नेता और तीन बार के मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी का सामना हो रहा था राजीव गांधी की पसंद के युवा नेता और प्रदेश अध्यक्ष अशोक गहलोत का। गहलोत का किरदार अब सचिन पायलट Sachin Pilot के पास है तो खुद गहलोत अब हरिदेव जोशी के रोल को निभा रहे हैं। तब के प्रदेश अध्यक्ष युवा गहलोत को राजीव गांधी, हरिदेव जोशी Haridev Joshi को चेक बैलेंस और चेकमेट के लिए इस्तेमाल कर रहे थे। जैसे आजकल उनके बेटे राहुल गांधी, पायलेट का करना चाह रहे थे।
तब अशोक गहलोत ने न केवल सरकार से इस्तीफा दिया बल्कि अपने चहेतों से भी दिलवाया। पार्टी के संगठन में भी बड़ी मात्रा में नेताओं ने त्याग देकर अशोक गहलोत Ashok Gehlot की ताकत दिखाई थी। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखकर अब ऐसा ही लग रहा है मानो वही सियासी ड्रामा रिपीट हो रहा हो। हालांकि इसमें थोड़ा सा मिसमैच जरूर है और वो ये है कि तब आलाकमान इतना कन्फ्यूज्ड नहीं था और राजीव वाकई जोशी को परेशान करना चाहते थे, रिप्लेस भी करना चाहते थे।
किंतु इस बार आलाकमान में भी दो गुट हैं। सोनिया-प्रियंका गुट अपनी सहूलियत को देखते हुए गहलोत के साथ है। वहीं राहुल गांधी Rahul Gandhi ने सचिन को गहलोत का खात्मा करने के लिए ही पैदा किया था। किंतु खुद राहुल की अब अपने घर में इतनी चलती नहीं। तभी तो सचिन को पहले तो इतना महत्वाकांक्षी बना दिया किन्तु अब राहुल खुद बैक में चले गए। इसीलिए सचिन को विद्रोही के रोल में आना पड़ रहा है। डॉ. सुधांशु ने बताया कि उस सियासी लड़ाई में तत्काल तो सीनियर गुट जीत गया था किंतु नौजवान गहलोत तब से कांग्रेस पर कुंडली मार कर स्थापित हैं।