राजस्थान में हर साल सबसे ज्यादा तबादले जिसमें जिस विभाग में होते हैं तो वो है शिक्षा विभाग। इन तबादलों को लेकर शिक्षा विभाग पर हमेशा सवालिया निशान लगते आए हैं। भले सरकार किसी भी पार्टी की क्यों न हो। दरअसल विभाग में कर्मचारियों की संख्या को देखते हुए सवाल उठना भी लाजमी है मगर कई बार शिकायतें रिश्वत को लेकर आती हैं तो मामला गंभीर हो जाता है। हालांकि पिछली बीजेपी की सरकार में एक तबादला नीति बनाने की बात सामने आई थी मगर सरकार उसे अमलीजामा पहनाने में सफल नहीं हो सकी।
सरकारें बदलती हैं तो हमेशा शिक्षा विभाग के कर्मचारियों के दिमाग में एक उम्मीद जागती है कि शायद इस बार सरकार हमारे बारे में भी न्याय करेगी। लेकिन कई सालों से उम्मीद का यही सिलसिला चलता आ रहा है। वर्तमान में जिस प्रकार की तबादला प्रक्रिया अपनाई जाती है उसको लेकर कई बार हंगामे होते भी देखे गए हैं। ऐसे में लोगों का आरोप रहता है कि सरकार रसूखदारों के तबादले निकटतम या मनपसंद जगह पर आसानी से कर देते हैं। वहीं कई लोग पैसे की एवज में भी अपना तबादला आसानी से करवा लेते हैं। असल में समस्या उन लोगों को आती है जो इन दोनों ही तरीकों से दूर रहते हैं।
इसी बात को ध्यान में रखते प्रदेश की गहलोत सरकार ने इसके लिए एक पॉलिसी तैयार करने की बात कही है। जो कुछ इस तरह की रहने वाली है—
- प्रोबेशन के दौरान तबादले नहीं हो सकेंगे।
- तबादले के लिए एक निश्चित अवधि सुनिश्चित की जाएगी।
- तबादला होने के पश्चात निर्धारित समयांतराल में ही हो सकेंगे पुन: तबादले।
- नीति के नियमानुसार ही तबादले हो सकेंगे।
बीजेपी की मंशा पर उठाए सवाल :
तबादला नीति को लेकर शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि बीजेपी चाहती तो तबादला नीति लागू कर सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। मालूम होगा कि इस पर बीजेपी ने एक कमेटी गठित करी थी और कमेटी ने अपनी रिपोर्ट भी बीजेपी सरकार सौंप दी थी। डोटासरा ने बताया कि हमने इस संबंध में कमेटी बना दी है, जिसे 1 महीने के भीतर रिपोर्ट देने को कहा है। रिपोर्ट मिलते ही इसे कैबिनेट में पेश कर दिया जाएगा।