डिप्लोमा इन फार्मेसी करने के बाद प्रैक्टिस ट्रेनिंग देने वाले मेडिकल स्टोर को अब फार्मेसी काउंसिलिंग ऑफ इंडिया से अनुमति लेनी होगी। इसके बाद ही विद्यार्थियों को प्रैक्टिस ट्रेनिंग मिल सकेगी। यह निर्णय सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों की बैठक में लिया गया। आप को बता दें कि प्रेस्क्रिप्शन को पढ़ना, दवाओं की डोज, किस मरीज को क्या दवा देनी है यह सब कुछ ट्रेनिंग में शामिल होता है।
राजस्थान में 1500 से 2000 विद्यार्थी डी-फार्मा करते हैं। गौरतलब है कि कई बार प्रैक्टिस ट्रेनिंग देने वाले मेडिकल स्टोर पर बिना उपस्थिति के प्रमाण पत्र देने की शिकायत मिली है और दवा वितरण, पेशेंट काउंसिलिंग, किस बीमारी में कितना डोज देना है इन सभी की जानकारी नहीं होना है।
ये कहता है नियम :
फार्मेसी प्रैक्टिस रेगुलेशन 2015 के तहत फार्मेसी में डिप्लोमा करने के बाद कैमिस्ट एंड ड्रगिस्ट से 90 या 500 घंटे की ट्रेनिंग लेना जरूरी है।
अब प्रमाण पत्र मिलने पर ही काउंसिलिंग में रजिस्ट्रेशन हो सकेगा। बिना प्रैक्टिस ट्रेनिंग के पंजीकरण नहीं करवा सकेंगे। राजस्थान के साथ-साथ देश भर में ऐसी करीब 3 हजार संस्थाएं संचालित हैं जहां हर साल लगभग 1 लाख 80 हजार स्टूडेंट्स यह कोर्स करके निकलते हैं। इस पर राजस्थान के फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष डॉ. ईश मुंजाल ने कहा कि डिप्लोमा कोर्स करने वाले विद्यार्थियों को मेडिकल स्टोर पर क्वालिटी से प्रैक्टिस मिलने का फायदा न केवल फार्मासिस्टों बल्कि मरीजों को भी मिलेगा।