प्रकाश पालीवाल/राजसमंद. पूरे भारत में वैष्णव सम्प्रदाय का एकमात्र मंदिर जहां फाल्गुन माह में गुलाल अबीर की जगह ठाकुरजी अंगारों से होली खेलते हैं। मंदिर परिसर में मौजूद दर्शनार्थी एक बार यह सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि ये वास्तविक था या हॉलीवुड फिल्म का कोई सीन देख रहे हैं। मगर ये सब ठाकुरजी के समक्ष असल में होता है। ऐसे दर्शन शायद ही दुनिया के किसी मंदिर में देखने को मिलें।
ऐसे होते हैं राल दर्शन :
वल्लभ संप्रदाय की तृतीय पीठ कांकरोली स्थित प्रभु द्वारकाधीश मंदिर में होली पर एक विशेष तरह के दर्शन होते हैं जिसे ‘राल के दर्शन’ कहा जाता है। प्रभु द्वारिकाधीश के राल दर्शन रात्रि के लगभग 9 बजे होते हैं। इन दर्शनों में प्रभु द्वारकाधीश के सम्मुख लकड़ी के दो बड़े बड़े बांसों पर कपड़ा बांधा जाता है। इस कपड़े को तेल में भिगोया जाता है। इस तेल में कपूर व अन्य जड़ी बूटियों को डाला जाता है फिर इसमें अग्नि प्रज्वलित की जाती है। जब प्रभु के सम्मुख इसे रखा जाता है तो वह गोस्वामी परिवार द्वारा इस अग्नि में पांच तरह की प्राकृतिक औषधियों पंचतत्व के साथ सिंघाड़े का आटा व राल डाली जाती है।
जिससे अग्नि की जोरदार लपटें उठती है। एक दर्शन में ये 5 से 6 बार राल उड़ाई जाती है। राल के दर्शन करने आये वैष्णव जन मंदिर में आग की लपटें देख रोमांचित हो जाते हैं। इस हैरतंगेज दर्शनों में वैष्णवजनों के मुख से द्वारकाधीश प्रभु के जयकारों की आवाज निकलती है जिससे मंदिर परिसर गुंजयमान हो जाता है।
‘राल दर्शन’ के पीछे है साइंटिफिक कारण :
मंदिर के अनुसार पुरातन काल में मौसमी बीमारियों को भगाने के लिये कई तरह के उपाय किये जाते थे। जिसमें एक ‘राल दर्शन’ भी है। जैसे की फाल्गुन माह में मौसम परिवर्तन का समय होता है। इस मौसम में जहां सर्दी जा रही होती है और गर्मी की शुरुआत होती है। जो हमारे शरीर में बैक्टीरिया पैदा करती है। इससे हम बीमार होते हैं।
‘राल’ से निकलने वाली पांच जड़ी बूटी के मिश्रण की सुगंध जब हमारी सांसों में घुलती है तो किसी भी बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को वह जड़ से खत्म कर देता है। होली डंडा रोपण के साथ ही यह दर्शन आरंभ होते हैं जो डोल तक विशेष क्रम में लगभग 4 से 5 बार आयोजित होते हैं। होली डंडा रोपण के साथ ही बृजवासी ग्वाल बाल द्वारकाधीश मंदिर में रसिया का गान कर प्रभु को रिझाते हैं।