जयपुर. आजादी के पहले गांधी की ओर से किए गए सत्याग्रह सभी को याद होंगे, लेकिन आजादी के बाद अपनी ही जमीन के लिए आंदोलन करने वाले नींदड़ के ग्रामीणों का यह ‘जमीन समाधि सत्याग्रह’ भी राजस्थान ही नहीं बल्कि देशभर में प्रचलित होता जा रहा है। राजधानी जयपुर के नींदड़ में जेडीए की ओर से प्रस्तावित आवासीय कॉलोनी के अंतर्गत आने वाली किसानों की जमीन को लेकर 2010 के बाद से ही विवाद चलता आ रहा है। इस विवाद के निपटारे को लेकर किसान पिछले करीब 10 साल से आंदोलनरत हैं। आज देश में कई जगह जमीनों को लेकर किए जा रहे धरने आंदोलनों में जमीन सत्याग्रह को अपनाया जा रहा है।
ये हैं सूत्रधार :
साल 2017 में यहां के ग्रामीण किसानों ने नगेंद्र सिंह शेखावत के नेतृत्व में अपने विरोध को कुछ तरह से शुरू किया जिससे सरकार एवं प्रशासन का ध्यान आकृष्ट हो सके। इसके अंतर्गत उन्होंने सरकार की ओर से अवाप्त की जाने वाली जमीन पर ही ‘जमीन समाधि सत्याग्रह’ की घोषणा कर डाली। यहीं से शुरू हुई संघर्ष की इस कहानी ने आंदोलनों के क्षेत्र में एक नए अध्याय को जन्म दिया। इस भू समाधि सत्याग्रह ने न केवल सरकार का ध्यान आकृष्ट किया साथ ही नेशनल मीडिया को भी नींदड़ आने के लिए मजबूर कर दिया।
सत्याग्रह से घबराई निवर्तमान सरकार ने कुछ ग्रामीण किसानों को जेल में भी डाल दिया था। इनमें सत्याग्रह के सूत्रधार ‘नगेंद्र’ भी शामिल थे। नगेंद्र ने अपनी 10 दिन की जेल यात्रा का एक किस्सा शेयर करते हुए बताया कि किसानों की जायज मांग को लेकर सरकार के इस दमनकारी रवैए ने उन्हें काफी झकझोर सा दिया था। उन्होंने बताया कि जेल में मौजूद लाइब्रेरी में कुछेक किताबें पड़ी हुईं थीं। उनमें ‘प्रेमचंद’ का एक ‘रंगभूमि’ नाम का उपन्यास भी था। जिसे पढ़कर उन्हें अफसोस भी हुआ और हौसला भी मिला।
प्रेमचंद के इस उपन्यास में भूमि अवाप्ति अथवा अधिग्रहण को लेकर उस समय जिस प्रकार की धारणाएं और सरकार की प्रवृत्तियां थीं वैसी ही स्थिति कई बार वर्तमान समय में भी देखने को मिलती है। प्रेमचंद ने लिखा था कि ‘शहर के बाहर की भूमि अमीरों के मनोरंजन और विनोद की जगह होती है।’ वह आगे लिखते हैं कि भारतवर्ष में अंधे आदमियों के लिए न नाम की जरूरत होती है और न ही काम की। सूरदास उनका बना-बनाया नाम है, वहीं भीख मांगना बना-बनाया काम है।
ये है जमीन सत्याग्रह :
इस सत्याग्रह में शामिल लोगों को जमीन में खड्डा खोदकर उसमें बिठा दिया जाता है, अन्य व्यक्ति इनके खड्डे को कंधों से नीचे तक यानि सीने तक मिट्टी से भर देते हैं। इस मुद्रा में इन्हें जमीन के अंदर आधे से ज्यादा शरीर को दबाकर रखन होता है। यह एक कठिन साधना की तरह है। जिसे करना इतना आसान नहीं है। इस दौरान ये लोग अन्न ग्रहण नहीं करते हैं। जल भी दूसरे लोग ही अपने हाथों से पिलाते हैं।
ये है मामला :
जयपुर के नींदड़ में जेडीए की ओर से प्रस्तावित आवासीय योजना को लेकर 2010 में करीब 328 हैक्टेयर भूमि की अवाप्ति की गई। ग्रामीण किसानों की मानें तो जेडीए ने अब तक डरा धमकाकर करीब आधी से ज्यादा जमीन सरेंडर भी करवा ली है। लेकिन संघर्ष समिति है कि जेडीए की ओर से की जा रही अवाप्ति नए कानून के आधार होनी चाहिए ताकि प्रभावित ग्रामीण किसानों को नुकसान न हो। वहीं जेडीए पुराने नियमों के तहत ही भूमि अवाप्ति पर अडा हुआ है। जेडीए का तर्क है कि अवाप्ति प्रक्रिया पुराने अधिनियमों के अनुसार ही की गई थी इसलिए नए कानून के तहत अवाप्ति नहीं हो सकती।
ये है नियम :
नए भूमि अवाप्ति अधिनियम के तहत जेडीए की ओर से किसानों को 35 फीसदी विकसित जमीन दिए जाने का नियम है। वहीं पुराने कानून में यह प्रतिशत केवल 25 फीसदी ही है।
रविवार को सत्याग्रह स्थल पर ग्रामीण किसानों से मिलने पहुंचे समाज सेवी सामाजिक कार्यकर्ता पंचशील जैन ने कहा कि सरकार चाहे तो आसानी से इस मसले को सुलझा सकती है। चाहे तो सरकार कानून में बदलाव करके भी किसानों को राहत प्रदान कर सकती है। समाधि सत्याग्रह पर सैकड़ों की संख्या में बैठे लोगों से बात करते हुए जैन ने सरकार तक उनकी आवाज को बुलंद करने का भरोसा भी दिया।