विश्वभर में 3 दिसंबर दिव्यांग दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य दिव्यांगों के प्रति लोगों के व्यवहार में बदलाव और उनके अधिकारों के प्रति जागरुकता लाना है। ताकि शारीरिक रूप से अक्षम लोग भी मुख्य धारा से जुड़ सकें। वहीं जब इनकी बात करते हैं तो कुछ ऐसे जांबाज भी हैं, जिन्होंने दिव्यांगता को कभी अपने रास्ते की बाधा नहीं बनने दिया और समाज के लिए मिसाल बने।
मोटिवेशनल स्पीकर बने निक
ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में जन्मे निक ने अपना जीवन इस ढंग से शुरू किया कि लोगों के लिए मोटिवेशनल गुरू बन गए। मोटिवेशनल स्पीकर के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले निक की कहानी करोड़ों लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। जन्म से ही निक के हाथ—पैर नहीं हैं। टेट्रा-एमेलिया सिंड्रोम नाम की दुर्लभ जन्मजात बीमारी से ग्रस्त हैं। निक को छोटे से छोटे काम के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती थी। जिन सभी से जूझते हुए निक ने अपनी पहचान बनाई। रोजाना का काम करने के साथ ही निक स्वीमिंग, पानी पर सर्फिंग से लेकर स्काई डाइविंग तक करते हैं। एक समय आया था जब उन्होंने आत्महत्या करने की सोची थी। उस निक की उम्र महज दस साल की थी। इसके बाद 17 साल की उम्र में हाई स्कूल में सफाई करने वाले इंचार्ज ने उन्हें ऐसा प्रेरित किया कि फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और दिव्यांग ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए मोटिवेशनल बन गए।
दिव्यांगता को नहीं आने दिया अपनी जिम्मेदारियों के आगे
छत्तीसगढ़ स्थित बलरामपुर के आशीष जन्म से ही दिव्यांग हैं। जन्म से ही ना तो उनके हाथ थे और ना ही पैर, इसके बाद भी वह कंप्यूटर, मोबाइल और यहां तक के स्कूटी भी चलाते हैं। आशीष बलरामपुर में शंकरगढ़ पंचायत कार्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर हैं। परिवार में आशीष ही कमाने वाले हैं। आशीष पढ़ाई के साथ ही नौकरी भी कर रहे हैं। सभी लोग उनके जज्बे को सलाम करते हैं।
मेहनत से दी मुश्किलों को मात
छत्तीसगढ़ के ही एक छोटे से गांव में जन्मे नरेंद्र बंजारे ने अपनी मेहनत से दिव्यांगता को ही मात दे ड़ाली। नरेंद्र 11वीं कक्षा में गणित विषय पढ़ना चाहते थे, लेकिन दिव्यांगता के कारण उन्हें गणित विषय में प्रवेश नहीं मिल रहा था, बाद में काफी मुश्किलों के बाद उन्हें यह सब्जेक्ट मिला। जिसके बाद इन्होंने कम्प्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की। पढ़ाई पूरी करने के बाद पुणे में नरेंद्र को पहली जॉब मिली। हालांकि, नरेंद्र जॉब छोड़कर गांव वापस आ गए। यहां आकर उन्होंने बच्चों को मुफ्त में पढ़ाया। इसके बाद पीएसी की तैयारी की और वर्तमान में रायपुर नगर निगम में सीएमओ के पद पर कार्यरत हैं।
135 फ्रैक्चर, फिर भी सिखा रहे जीने का सलीका
स्पर्श के जन्म होने के छह महीने बाद भी उनके माता—पिता को उसे गोद में लेने का इंतजार करना पड़ा। क्योंकि उसके शरीर में करीब 40 फ्रैक्चर थे। डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था कि ये बच्चा दो दिन से ज्यादा जिंदा नहीं रह पाएगा। लेकिन स्पर्श आज न सिर्फ जिंदा है बल्कि दूसरों के लिए मिसाल भी बन गया है। 15 साल के स्पर्श के शरीर में करीब 135 फ्रैक्चर हो चुके हैं। इतना ही नहीं अब तक 8 से 9 सर्जरी भी हो चुकी हैं। स्पर्श मोटिवेशनल स्पीकर होने के साथ ही म्यूजिक कंपोजर भी हैं। वह 6 देशों में 125 लाइव परफॉरमेंस दे चुके हैं साथ ही कुल 7 सिंगिंग कॉम्पिटीशन भी जीत चुके हैं।